۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / यह आयत सिखाती है कि सच्चा सुधार और परोपकार ईमानदारी पर आधारित हैं। पाखंडियों का पाखंड और झूठे दावे अंततः उजागर हो जाते हैं, और उनके कर्मों का संकट उनके सामने प्रकट हो जाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

فَكَيْفَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَاءُوكَ يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا إِحْسَانًا وَتَوْفِيقًا    फ़कैफ़ा इज़ा असाबतहुम मुसीबतुन बेमा क़द्दमत अयदीहिम सुम्मा जाउका यहलेफ़ूना बिल्लाहे इन अरदना इल्ला एहसानव व तौफ़ीक़ा । (नेसा 62)

अनुवाद: तो क्या होगा जब उनके कर्मों के कारण उन पर विपत्ति आ पड़े और वे आपके पास आकर ईश्वर की शपथ खायें कि हमारा इरादा केवल भलाई करना और एकता पैदा करना था।

विषय:

पाखंडियों के पाखंड और उनके किए के दण्ड के प्रभावों का वर्णन करती है।

पृष्ठभूमि:

सूरह नेसा में मुनाफ़िकों की दोगली नीति और उनकी उत्पत्ति को स्पष्ट किया गया है। यह आयत उनके व्यवहार पर प्रकाश डालती है जब वे कष्ट सहने के बाद अपने इरादे अच्छे दिखाने की कोशिश करते हैं।

तफ़सीर:

1. मुसीबत का कारण: आयत इस तथ्य का वर्णन करती है कि पाखंडियों पर जो मुसीबत आती है, वह उनके अपने कार्यों का परिणाम है, जिसमें झूठ बोलना, धोखा देना और अवज्ञा शामिल है।

2. पाखंड की निशानी: पाखंडी लोग जब मुसीबत में होते हैं तो अपने सच्चे इरादों को छिपाने के लिए कसम खाते हैं कि उनका उद्देश्य केवल परोपकार और सुधार है।

3. ईमानदारी की कमी: अच्छाई और एकता के उनके दावे महज़ दिखावे हैं, जिसके पीछे उनका स्वार्थ और स्वार्थ छिपा है।

महत्वपूर्ण बिंदु

कर्मों का परिणाम : व्यक्ति के कर्मों का परिणाम भी दुनिया में देखा जा सकता है, विशेषकर पाखंडियों को।

पाखंड का अंत: पाखंड अल्लाह और उसके दूत के लिए अस्वीकार्य है और अपमान है।

सुधार की वास्तविकता: सुधार के लिए ईमानदारी आवश्यक है, अन्यथा यह प्रक्रिया पाखंड और धोखाधड़ी में बदल जाती है।

परिणामः

यह आयत सिखाती है कि सच्चा सुधार और परोपकार ईमानदारी पर आधारित हैं। पाखंडियों का पाखंड और झूठे दावे अंततः उजागर हो जाते हैं, और उनके कर्मों का संकट उनके सामने प्रकट हो जाता है।

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सूर ए नेसा की तफसीर 

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